महिलाओं के आर्थिक जीवन पर आधुनिकीकरण का प्रभाव (रीवा नगर के विशेष संदर्भ में)

 

सुनीता शुक्ला

शोधार्थी (समाजशास्त्र), शास. टी.आर.एस. महाविद्यालय रीवा (.प्र.)

 

 

मानव स्वभाव से ही सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के नाते उसके जीवन के विविध क्षेत्रों से संबंधित अनेक प्रकार की क्रियाओं का सम्पादन करना पड़ता है। जिनमें आर्थिक क्रिया सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। आर्थिक क्रियाशीलता मनुष्य की उन सभी क्रियाओं में से महत्वपूर्ण है, जिससे वह अपना शारीरिक जीवन अस्तित्व बनाये रखता है। मनुष्य की आवश्यकतायें अनन्त होती है जिनकी पूर्ति करना मनुष्य के लिए आवश्यक होता है। भूख, यौन इच्छा एवं संवेगी अनुक्रिया ऐसी ही आवश्यकतायें हैं। उन्हे संतुष्ट करने का परिणाम जीवन लीला की समाप्ति या सामान्य जीवन प्रणाली का अस्त-व्यस्त होना हो जाता है। मनुष्य इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयास करता रहता है। आज आधुनिकता का मानव जीवन से सीधा संबंध है। समय के बदलते परिवेश के साथ मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं में भी परिवर्तन किया, यही परिवर्तन धीरे-धीरे आधुनिकता का रूप लेने लगी। जहाँ तक भारत मेंआधुनिकता का प्रश्न है, वह गुलामी के समय से ही प्रारंभ हो गया था। जब अंग्रेज इस देश को अपने अधीन कर अपनी पश्चिमी सभ्यता की परतें इस देश के ऊपर जमाने लगे थे। आजादी के बाद देश में तीव्र गति से सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र में परिवर्तन हुआ। लोगों में जागरूकता बढ़ी, शिक्षा के स्तर में परिवर्तन हुआ। औद्योगीकरण की प्रणालियाॅ विकसित हुई, संचार एवं आवागमन के साधनों में विकास हुआ। आधुनिक युग प्रौद्योगिकी का युग है प्रौद्योगिकी के प्रयोग ने आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया है। आधुनिकीकरण का प्रभाव समाज के हर क्षेत्र पर पड़ा है। ग्रामीणा समाज भी आधुनिकीकरण से प्रभावित हो रहा है। प्रस्तुत शोध-पत्र रीवा नगर के महिलाओं में आधुनिकीकरण के प्रभाव पर केन्द्रित है। शोध-पत्र को तैयार करने के लिए उद्देश्यपूर्ण निदर्शन विधि को माध्यम से 50 उत्तरदाताओं का चयन किया गया। अवलोकन साक्षात्कार अनुसूची, विधि के माध्यम से चयनित उत्तरदाताओं से ग्रामीण समाज के किन-किन क्षेत्रों में आधुनिकीकरण का प्रभाव पड़ा है यह जानने का प्रयास किया गया साथ ही प्राप्त आंकड़ों को वर्गीकृत ,विश्लेषित कर निष्कर्ष निकाले गए हैं। इसके साथ ही उन सभी इकाइयों का अध्ययन किया गया है जो आधुनिकीकरण से प्रभावित हुई है।

 

आधुनिकीकरण, परिवेश, प्रौद्योगिकी, वेषभूषा

 

 

 

प्रस्तावना:

आधुनिकता के इस दौर में श्रम प्रतिभा का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है। जहाँ महिलाओं ने अपनी भूमिका से यह सिद्ध कर दिया हो कि बुद्धि क्षमता तथा कर्तव्यनिष्ठा में वे पुरूषों से कम नहीं है। चाहे साहित्यिक हो या तकनीकी, आर्थिक हो या सामाजिक वैज्ञानिक हो या व्यवसायिक, सांस्कृतिक हो या राजनीतिक। शिक्षा, सामाजिक कार्य, डाॅक्टरी तथा नर्सिंग इन चार प्रमुख व्यवसायों में महिलाओं का अनुपात अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है। दफ्तर, व्यवसाय, मिल, कारखानों उद्योग आदि किसी क्षेत्र में भी वे मामूली पदों से लेकर उच्चतम पदों तक पर आसीन है। महिलाओं ने नगण्यता की स्थिति से अपने को निकाल कर वर्तमान स्थिति तक पहुॅचाया है। संवैधानिक अथवा कानूनी परिभाषा के शोषित वर्ग की तरह उन्हें किसी भी प्रकार का संरक्षण अथवा सुविधा प्राप्त नहीं हुई। सदियों से पारिवारिक संरक्षण एवं बंधन जकड़ी नारियाॅ कौटुम्बिक दायित्व के घेरे से निकलकर अपने आपको वर्तमान सामाजिक, आर्थिक ढ़ाॅचे का महत्वपूर्ण अंग बना ली है। आधुनिक युग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में युगान्तकारी परिवर्तन हुए हैं, जिसके चलते समाजिक और आर्थिक जीवन मंे अनेक परिवर्तन हुए हैं और यह परिवर्तन निरन्तर रूप से विश्व स्तर पर आज भी चल रहा हैं। इसी परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए समाजशास्त्रियों ने आधुनिकीकरण जैसी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। आधुनिकीकरण के बहुत सारे आयाम हैं इसे कई स्तरों पर देखा जा सकता हैं। जैसे- व्यक्ति, समूह एंव समाज के रूप में। आधुनिकता से संबंध एक खास तरह के अनुभव एक विशेष प्रकार की संस्कृति से है। जिसमें सामाजिक आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक गठबन्धन होता है जो इसे एक अलग पहचान देता है। आधुनिकता में लचीलापन होता है और यह हमेशा नए अविष्कारों में जुटी रहती है। आधुनिकता का पाॅप कल्चर जादुई होता है इसे खान-पान, रहन-सहन, वेेशभूषा सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। आध्ुानिकता एक प्रकार से औद्योगिक अर्थ-व्यवस्था का आईना है यही आधुनिकता जब अत्याधिक विकसित हो जाती है तब इसे उत्तर आधुनिकता कहते है।

 

वर्तमान आधुनिकता की व्याख्या फास्ट-फूड, रेस्टोरेन्ट, क्रेडिट कार्ड मोबाइल फोन तथा इन्टरनेट चेटिंग के संदर्भ में की जाने लगी है।

 

रीवा जिला प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से सम्पन्न है। यहाँ महिला श्रम संसाधन की भी प्रचुरता है लेकिन संसाधनों के सही क्रियान्वयन के अभाव में आर्थिक विसंगतियाँ पीछा किये रहती हैं। महिलाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग खनिज संसाधन वनोपजों पर आश्रित है। इस आधुनिक समय में ंव्यवसायीकरण की तजी में महिलाएँ परम्परागत कुटीर उद्योगों से और उत्साह के साथ जुड़ रही हैं तथा सरकारी योजनाओं के तहत संचालित लघु कुटीर उद्योंगो का भी उन्हें लाभ मिल रहा है।

 

‘‘ अर्थ की महत्ता वाला यह युग महिलाओं को आर्थिक रूप से उन्हे अपनी ओर आकर्षिक कर रहा है। व्यवसायों से जुड़े परिवारों में यहाँ की महिलायें अनाज से लेकर विभिन्न खाद्य सामग्रियों को घर में ही पैकिंग कर स्वयं को बाजार से जोड़कर अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में सलंग्न हैं। परम्परागत व्यवसायों का भी आधुनिकीकरण के चलते कायांतरण हो चुका है जिसके चलते उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ गई है और उसके मूल्य में अभिवृद्धि हुई है।

 

आज भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में महिलाओं की अधिकांश संस्था उच्च शिक्षा प्राप्त करके योग्यता के अनुसार कार्य पर लगी हुई है। खेत काटने से लेकर आकाश की ऊँचाइयों पर पहुँचकर महिलाओं ने अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा लोगों को आश्चर्य चकित कर दिया है। अब समाज केवल पुरूषों तक ही सीमित नही रह गया बल्कि महिलाओ ने अपने कार्यो से समाज में अपना स्थान बनाया है। जिससे पुरूषों ने महिलाओं को एक सहयोग या मित्र की संज्ञा देकर उनकी स्थिति को ऊँचा उठाने में सहयोगात्मक और संगठनात्मक भूमिका का रूप प्रदान किया है। अधिकतर महिलायें शिक्षित होकर अपने कार्यों से अपने सहयोगी साथियों के साथ प्रतिस्पर्धात्मक कार्य करके अपनी योग्यता को भी निखारने का कार्य किया है।

 

 

अपेक्षाकृत यदि हम अशिक्षित महिलाओं का आँकलन करें तो यह स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि इस स्थिति पर जीवन निर्वाह करने वाली महिलाओं में भी आधुनिकता का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है। इनमें भी फैशन, पहनावा, रहन-सहन आदि पर काफी भिन्नता पाई जाती है।

 

समाजशास्त्रियों ने आधुनिकता को कुछ इस प्रकार स्पष्ट करने का प्रयार किया हैः-

एम.0एन0श्रीनिवास - ‘‘

किसी पश्चिमी देश के प्रत्यक्ष परोक्ष सम्पर्क के कारण किसी र्गर पश्चिमी देश में होने वाले परिवर्तनों के लिए प्रचलित शब्द है, आधुनिकीकरण ’’

 

डाॅ0 श्यामाचरण दुबे - ‘‘

आधुनिकता एक प्रक्रिया है जो परम्परागत समाज में प्रौद्योगीकरण आधारित समाज की ओर अग्रसर होती है ’’

 

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाएं स्पष्टी करती है कि आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके कारण समाज का परम्परागत स्वरूप बदल रहा है नये विचारों और तकनीकों का विस्तार हो रहा है।

 

शोध का उद्देश्य -

  नगरीकरण, औद्योगीकरण, मशीनीकरण तथा श्रमविभाजन आदि के कारण महिलायें पर क्या प्रभाव पड़ा है इसका अध्ययन करना।

  रीवा नगर की महिलाओं के सामाजिक जीवन में आधुनिक परिवर्तनों के प्रभावों का ज्ञान प्राप्त करना।

  रीवा नगर की महिलाओं के पारिवारिक, वैवाहिक स्वरूपों, परम्परात्मक प्रतिमानों तथा नियोजित परिवर्तनों का इनके जीवन में पड़ने वाले प्रभावों का ज्ञान प्राप्त करना।

  रीवा नगर की महिलाओं में शिक्षा का उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों एवं स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना।

  धार्मिक विश्वासों, मान्यताओं, प्रमुख संस्कारों एवं मनोरंजन के साधनों पर आने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना।

 

अध्ययन का महत्व:-

रीवा जिले की महिलाओं में आधुनिकीकरण के प्रभाव को उनकी आकांक्षाओं, समस्याओं, सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, पारिवारिक, वैवाहिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्नताओं के साथ राष्ट्रीय विकास नीति में उनके जुड़ते सरोकारों को देखा गया है। मानव समाज की प्रकृति परिवर्तनशील है। जैसे युग परिवर्तन होता है। वैसे ही मानव की प्रकृति भी परिवर्तित होती है। आधुनिक युग प्रौद्योगिक युग है। इस युग में व्यक्ति का जीवन प्रायः भौतिकवादी हो गया है। और वह भौतिक सुख-साधनों की प्राप्ति में निरंतर व्यस्त रहता है। पश्चिमी सभ्यता के परिणामस्वरूप व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पल में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। मशीनीकरण श्रम विभाजन से महिलाओं के परिवार की भूमिका में भी परिवर्तन होता गया है।

 

अध्ययन पद्धति एवं उपकरण -

प्रस्तुत शोध -पत्र को तैयार करने के लिए अध्ययन हेतु वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया गया है जिसके अन्तर्गत उद्देश्य पूर्ण निर्दशन अवलोकन पद्धति, साक्षात्कार अनुसूची पद्धति के माध्यम से अध्ययन किया गया है।

 

उद्देश्य पूर्ण निदर्शन विधि के माध्यम से 50 परिवारों को अध्ययन के लिए चुना गया है। जो समस्त का प्रतिनिधव्त करती है। सामान्यतः आधुनिकीकरण का प्रभाव प्रायः समाज के सभी क्षेत्रों पर पड़ा है।

 

अवलोकन द्वारा अध्ययन क्षेत्र से विषय का अध्ययन किया गया है। साक्षात्कार अनुसूची पद्धति के माध्यम से चयनित परिवारों से यह जानने का प्रयास किया गया है कि, आधुनिकीकरण के माध्यम से ग्रामीण समाज पर क्या-क्या बदलाव आए हैं, अनुनिकीकरण का प्रभाव किन-किन क्षेत्रों पर पड़ा साथही आधुनिकीकरण के क्या-क्या कारण रहे इस बारे में प्रश्न पूछे गए और विषय से सम्बन्धित तथ्य संकलित किये गये है।

 

तथ्यों के संकलन को दो भागों में विभाजित किया गया है-

1. प्राथमिक स्रोत-

प्राथमिक स्रोत के अन्तर्गत अवलोकन साक्षात्कार तथा उद्देश्यपूर्ण निदर्शन विधि के माध्यम से 50 उत्तरदाताओं

 

2. द्वैतीयक स्रोत-

द्वैतीयक स्रोत के अन्तर्गत प्रकाशित तथा अप्रकाशित ग्रन्थों साहित्यों तथा पत्र-पत्रिकाओं और जनगणना रिपोर्ट द्वारा तथ्य संकलित किये गये हैं।

 

उपकल्पना -

चिंतन और जिज्ञासा मानव की मूल प्रवृत्तियां है और यही उसके वैज्ञानिक आधार के केन्द्र विन्दु भी है। चिंतन के स्तरों के दो भाग हो सकते हैं।

1. अनुसंधान पूर्व का चिंतन

2. अनुसंधान पश्चात का चिंतन

वह चिंतन जो अनुसंधान के पूर्व किया जाता है उपकल्पना के नाम से जाना जाता है। अनुसंधान के प्रारम्भ में ही अनुसंधानकर्ता अनुसंधान के कारणों और परिणामों के बारे में एक निश्चित रूप-रेखा बना लेते हैं उसे ही उपकल्पना कहा जाता है।

 

लुण्डवर्ग ने कहा है किएक उपकलपना एक सामायिक कामचलाऊ सामान्यीकरण है जिसके वैद्यता की जांच शेष रहती है

 

प्रस्तुत शोध-पत्र में 03 उपकल्पनाएं मुख्य रही है।

1. रीवा जिले में कामकाजी महिलाओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई नगरों के साथ-साथ अब गाॅवों की महिलाओं में भी काफी परिवर्तन रहा है।

2. आधुनिकीकरण के कारण महिलाओं की सामाजिक संरचना में बदलाव आया है।

3. आधुनिकीकरण के कारण अस्पृश्यता की भावना में कमी आई हैं।

 

उपकल्पना का परीक्षण -

उपकल्पना - आधुनिकीकरण के कारण महिलाओं की सामाजिक संरचना में बदलाव आया है।

 

परीक्षण -

प्रस्तुत शोध-पत्र में जिस उपकल्पना का निर्माण किया गया है उसके परीक्षण के दौरान यह ज्ञात होगा कि आधुनिकीकरण के कारण परम्परागत सामाजिक संरचना में परिवर्तन हुआ है। सामाजिक संस्थाएं जैसे- संयुक्त परिवार, परम्परागत व्यवसाय, विचार , जाति-व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है। अध्ययन कार्य के दौरान इसका परीक्षण किया जायेगा।

 

उपकल्पना -

आधुनिकीकरण के कारण अस्पृश्यता की भावना में कमी आई है।

 

परीक्षण -

जब से ग्रामीण समाज में आधुनिकता ने कदम रखा है उसके बाद से ही बदलाव सा गया है। आधुनिकीकरण के कारण लोगों में हम की भावना का विस्तार हुआ है। व्यक्तिवादिता के स्थान परहम की भावना प्रबल हुई है और छुआ-छूत के स्थान परस्पर्श की भावना पैदा हुई है। इनसब के बाद भी कुछ हद तक ही अस्पृश्यता का अन्त हुआ है। लोग अभी भी छुआ-छूत की भावना से ग्रसित हैं, इस उपकल्पना का परीक्षण अध्ययन के दौरान किया जायेगा।

 

शोध-क्षेत्र का संक्षिप्त विवरण -

प्रस्तुत शोध-पत्र में चयनित अध्ययन क्षेत्र रीवा नगर है। रीवा जिला, मध्यप्रदेश के उत्तर पूर्व में स्थित है। इसका नामकरण नर्मदा नदी के दूसरे नाम रेवा पर आधारित है। इसके उत्तर में उत्तरप्रदेश के बांदा तथा इलाहाबाद, पूर्व तथा पूर्व-उत्तर में मिर्जापुर जिला, दक्षिण में सीधी जिला तथा दक्षिण-पश्चिम में सतना जिला है। इसका कुल क्षेत्रफल 6287 वर्ग किलोमीटर है, जो छः तहसीलों (हुजूर सिरमौर, गुढ़, रायपुर कर्चुलियान, मऊगंज, नईगढ़ी, हनुमना, त्योंथर तथा जवा) में विभक्त है। प्रस्तुत अध्ययन का सीमा क्षेत्र हुजूर तहसील जिला मुख्यालय के आस-पास का क्षेत्र है।

 

रीवा नगर की जनसंख्या 2011 के जनगणना के अनुसार 235654 के लगभग है। जिनमें 124012 पुरूष औरा 111642 महिलाओं की संख्या है।

 

पूर्व साहित्य की समीक्षा -

भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारत में विकसित हुयी आधुनिकता का विश्लेषण करते हुए अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए हैं -

 

प्रो0 एम0एन0 श्रीनिवास ने अपनी कृतिआधुनिक भारत में सामयिक परिवर्तननामक पुस्तक के माध्यम से पश्चिमीकरण द्वारा जीवन के विभिन्न खेत्रों मं आधुनिकता के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों को इंगित करने का प्रयास किया है।

प्रो0 योगेन्द्र सिंह की पुस्तकमार्डनाइजेशन आॅफ इण्डियन ट्रेडिशन 1972 आधुनिकता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। जिसमें उन्होंने सैद्धान्तिक विश्लेषण किया है।

 

तथ्यों का संकलन वर्गीकरण एवं विश्लेषण:-

तालिका क्र.1

शिक्षा की जागरूकता पर प्रभाव

शिक्षा एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है। शहरी क्षेत्रों में शिक्षा प्रचार-प्रसार विस्तार तो है ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार विस्तार तो है ही, ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। शासन स्तर पर भी शिक्षा के प्रचार-प्रसार जगरूकता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। अभिभावक भी बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक हुए है। एक बड़ा प्रतिशत अर्थात् 90 प्रतिशत लोगो का मानना है कि, आधुनिकीकरण के फलस्वरूप शिक्षा के प्रति लोगों में रूझान बढ़ा है। 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं का यह भी मानना है कि व्यवहारिक ज्ञान होना चाहिए इसके लिए पुस्तकीय ज्ञान आवश्यक नहीं है निम्नलिखित तालिका इस बात को स्पष्ट भी करती है।

 

परिवार के स्वरूप पर प्रभाव:-

भारतीय समाज के प्रमुख आधारो में संयुक्त परिवार एक प्रमुख आधार रहा है जो कि ग्रामीण समाज की देन है। परिवार को प्राथमिक जीवन की प्रथम पाठशाला कहा गया है यही पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। जहाॅ वह समाजीकरण के माध्यम से बहुत कुछ सीखता है। संयुक्त परिवार में रहकर व्यक्ति कर्तव्यों अधिकारों दायित्वों को समझता निर्वहन करता है। प्रस्तुत तालिका यह दर्शाती है कि, आधुनिकीकरण नगरीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप परिवार की संयुक्तता में परिवर्तन हुआ है। मात्र 38 प्रतिशत परिवार ही संयुक्त रूप में पाये गए।

 

विस्तारित पारिवार का तात्पर्य यह है कि वर्तमान समय में परिवारों से तो जुड़े है लेकि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई रोजगार की तालश आदि कारणों से गाॅवों से नगरों की ओर पलायन कर रहें है। ऐसे परिवारों की संख्या 10 प्रतिशत पाई गई है।

 

एकांकी परिवार वे परिवार कहे जाते है जिसमें पति पत्नी  उनके अविवाहित बच्चे होते है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ी है। इनका कुल प्रतिशत 52 रहा है।

 

इस प्रकार देखने मंे यह आया है कि आधुनिकीकरण वह प्रमुख कारण है जिसने परिवारों के स्वरूपों को परिवर्तित किया है।

 

महिलाओं की अर्थव्यवस्था शिक्षित होकर शासकीय कार्य करके अथवा स्वयं के व्यवसाय तथा सरकार तथा सरकार द्वारा प्राप्त ऋण से अपने इच्छानुसार व्यवसाय जैसे दुग्ध उत्पादन हेतु पशुपालन सिलाई उद्योग, गृह उद्योग धन्धों के माध्यम से आर्थिक कमी की पूर्ति करती है। तथा कुछ महिलायें श्रम के माध्यम से श्रमिक का कार्य करके अपनी अर्थ-व्यवस्था को सृदृढ़ बनाकर आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। अध्ययन की गयी महिलाओं के व्यवसाय से सम्बंधित जानकारी व्यवसाय के रूप में निम्नानुसार है। जिसको तालिका में दर्शाया गया है।

 

उपरोक्त तालिका से यह ज्ञात होता है, कि वर्तमान में 37 प्रतिशत महिलायें सरकारी नौकरी, 23 प्रतिशत महिलायें अशासकीय नौकरी तथा 18 प्रतिशत महिलायें मजदूरी, 10.0 प्रतिशत व्यवसाय पर, 7 प्रतिशत महिलायें पशुपालन और 5 प्रतिशत महिलायें अन्य कार्य करके आय की प्राप्ति करती है तथा आर्थिक कमी को पूरा करके आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करती थीं। बचत के रूप में भी कुछ रकम किसी बैंक में रखती है और उससे प्राप्त व्याज का उपयोग और उपभोग परिवार के लिये करती है।

 

 

 

उपर्युक्त तालिका से ज्ञात होता है की अध्ययनरत महिलाओं में वर्तमान समय की 15 प्रतिशत 1000 से 1500 तथा 12.5 प्रतिशत 1500 से 2500, 37.5 प्रतिशत 2500 से अधिक 3500, 22.5 प्रतिशत 3500 से 4500, 6 प्रतिशत 4500 से 6000 4 प्रतिशत 6000 से 8000 एवं 2.5 प्रतिशत महिलायें 8000 रूपये से ऊपर की आय वर्ग की थी। वर्तमान में महिलाओं की आय बढ़ी है। परन्तु बढ़ती हुई मँहगाई और रूपये की आज की वैल्यू को देखते हुये उनकी आय बहुत कम तथा गरीबी और निर्धनता उसी स्तर की है। आज भी 1000 से 1500 रूपये आय वर्ग वाली महिलाओं की संख्या 15 प्रतिशत है।

 

 

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है, कि वर्तमान की महिलाओं द्वारा 51 प्रतिशत भोजन में, 20 प्रतिशत वस्त्र, 5 प्रतिशत चिकित्सा मेें, 3 प्रतिशत मकान में, 3 प्रतिशत रोशनी में, 2 प्रतिशत ईधन में, 4 प्रतिशत शिक्षा में, 2 प्रतिशत अन्य मदो में खर्च करते है। जबकि पूर्व पीढ़ी की महिलाओं में ईधन मनोरंजन मदो में व्यय निरंत था। वर्तमान पीढ़ी की महिलाओं में चिकित्सा, मनारंजन, वस्त्र तथा प्रकाश के प्रतिशत व्यय में वृद्धि हुई है।

 

बचत:

महिलाओं की आय बहुत कम है। आय के कम होने तथा आवश्यकताओं के बढ़ जाने से महिलायेें ज्यादा मात्रा में रकम की बचत नही कर पाती है। जो भी बचत करती है, वह बहुत कम होती मुशकिल से होती है। बचत के लिये उन्हे सोचना पड़ता है। और अलग से भी अन्य लोगो से सयम-समय पर ऋण का भी भार हो जाता है।

 

 

उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है, कि वर्तमान में 75 प्रतिशत महिलायें बचत करती है। तथा 25 प्रतिशत महिलायें बचत नही करती है।

 

उपरोक्त तालिका से यह बात उभर कर सामने आती है कि आधुनिकता के इस खर्चीले युग में अगर महिलाएँ रोजगार शून्य रह जाती तो उनकी स्थिति पर सुधार संभव हो पाता। 42 प्रतिशत महिलाएँ मानती है कि अगर वे रोजगार से जुड़ती तो उन्हें किसी भी कार्य संपादन में बाधा पहुँचती। वही 34 प्रतिशत महिलाओं ने इस स्थिति में मानसिक तनाव की बात कही। 10 प्रतिशत महिलायें इस बात को स्वीकार रही है कि कार्य और अर्थ से सीधे अगर वे जुड़ती तो उनके व्यक्तित्व का विकास ठीक ढंग से हो पाता और 14 प्रतिशत महिलाएँ साफतौर पर सहमत होती है कि उनकी आकाँक्षायें कुंठित हो जाती है।

 

अतः आधुनिकीकरण के प्रभाव से महिलायें आर्थिक सुदृढ़ता प्राप्त करने के लिए व्यवसाय के हर विभिन्न रूपों को अपनाने हेतु आगे बढ़ रही है। आध्ुनिक महिलाओं का यहाँ तक मानना है कि महिलाये घर की चार दीवारीसे निकलकर पुरूषों के समकक्ष खड़ी होकर आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में अपनी विशिष्ट निभाने ही सामाजिक व्यवहारों त्यौहारों और परम्पराओं का सच्चे अर्थाे में निर्वहन कर सकती है।

 

निष्कर्ष:

21वीं शताब्दी की महिलाओं में आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा व्यावसायिक आकांक्षा बहुत प्रबल हो गयी है वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहती है। इससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह प्रगति की सीढ़ी पर चढ़ती जायेगी एवं समाज में फली बुराई रूपी अन्धकार को दूर कर सकेगी। नारियों के लिये आत्म अभिव्यक्ति और आत्म सन्तुष्ट के अवसर अनुचित रूप से सीमित रखे गये हैं। मशीनीयुग ने घर से बाहर ही वस्तु उत्पादन इतना अधिक बढ़ा दिया है। कि अंशतः आर्थिक आवश्यकता के चलते महिलायें अब घर से बाहर काम अपनाने लगी हैं।

1. उपरोक्त अध्ययन के उपरान्त निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि आधुनिकीकरण के फलस्वरूप, शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। 90 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इस बात को सत्यापित भी किया है।

 

2. आधुनिकीकरण के फलस्वरूप परिवारों के स्वरूपों में परिवर्तन को स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। 38 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने यह स्वीकार किया है कि नगरीकरण और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप संयुकत परिवार परिवर्तित हो रहे है।

 

3. वर्तमान में 37 प्रतिशत महिलायें सरकारी नौकरी, 23 प्रतिशत महिलायें अशासकीय नौकरी तथा 18 प्रतिशत महिलायें मजदूरी, 10.0 प्रतिशत व्यवसाय पर, 7 प्रतिशत महिलायें पशुपालन और 5 प्रतिशत महिलायें अन्य कार्य करके आय की प्राप्ति करती है तथा आर्थिक कमी को पूरा करके आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करती थीं। बचत के रूप में भी कुछ रकम किसी बैंक में रखती है और उससे प्राप्त व्याज का उपयोग और उपभोग परिवार के लिये करती है।

 

 

4. महिलाए समाज कीधुरी है। पूरा समाज परिवार उन्हीं के ईद-गिर्द घूमता है। परिवर्तन विकास के इस दौर में महिलाए भी इससे अछूती नहीं है। 62 प्रतिशत महिलाओं ने यह बताया है कि आधुनिकीकरण के फलस्वरूप महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया है।

 

5. आधुनिकता के इस खर्चीले युग में अगर महिलाएँ रोजगार शून्य रह जाती तो उनकी स्थिति पर सुधार संभव हो पाता। 42 प्रतिशत महिलाएँ मानती है कि अगर वे रोजगार से जुड़ती तो उन्हें किसी भी कार्य संपादन में बाधा पहुँचती। वही 34 प्रतिशत महिलाओं ने इस स्थिति में मानसिक तनाव की बात कही।

 

6. उत्तरदाता यह मानते है कि आधुनिकीकरण नगरीकरण, औद्योगीकरण के फलस्वरूप संकीर्ण विचारधारा में परिवर्तन हुआ है तथा उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

 

सुझाव:-

1. आधुनिकीकरण के कारण मनुष्य की प्रतियोगिता की अंधी दौड़ में आगे बढ़ रहा है। जहाॅ व्यक्तिगत संबंध और रिश्ते पिछड़ रहे हैं। अंधी दौड़ और समाज के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

2. आधुनिकीकरण ने भौतिकता को बढ़ावा दिया है अतः अधिकाधिक आवश्यकता पूर्ति ने नैतिकता का हृास किया है और अपराधो को बढ़ावा दिया है। मानव पर सही दिशा निर्देश के साथ अपराध नियंत्रण की आवश्यकता है।

3. आधुनिकीकरण उपरोक्तावादी संस्कृति की जन्मदाता है। उपभोक्तावाद ने हम के स्थान पर मै को बढ़ावा दिया है सामाजिक संबंधों में दृढ़ता को स्थान दिया जाय।

4. आधुनिकीकरण को स्वीकार करना चाहिए ताकि, आधुनिकता का प्रसार हो सके

 

संदर्भ ग्रन्थ सूची

1ण् डाॅ. डी.एस. बघेल, भारत में ग्रामीण समाजशास्त्र पृष्ठ 314-320, कैलाश पुस्तक सदन, भोपाल

2ण् प्रो. घनश्याम धर त्रिपाठी श्रीमती आराधना सक्सेना, भारतीय समाज पृष्ठ 226 आस्था प्रकाशन जयपुर

3ण् डाॅ. जी0आर0मदन परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र पृ.क्र. 184 विवेक प्रकाशन जवाहर नगर दिल्ली 2005

4ण् डाॅ. डी.एस. बघेल परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र कैलाश पुस्तक सदन हमीदिया मार्ग भोपाल

5ण् डाॅ. एम.एन. शर्मा विकास एवं परिवर्तन का समाजशास्त्र पृ.क्र. 102 राजीव प्रकाशन लालकुर्ती मेरठ कैन्ट

6ण् डाॅ0 वीरेन्द्र सिंह यादव, 21वीं सदी का महिला सशक्तिकरण: मिथक एवं यथार्थ, ओमेगा पब्लिकेशन नई दिल्ली।

7ण् मानचन्द्र खंडेला, महिला सशक्तिकरण सिद्धांत एवं व्यवहार, अविष्कार पब्लिशर्स जयपुर पृष्ठ क्र. 100, 101, 102, 10.3

8ण् डाॅ. सुभाषचन्द्र गुप्ता, कार्यशील महिलायें एवं भारतीय समाज, अर्जुन पब्लिशिंग हाउस नई दिल्ली पृष्ठ क्र. 198-199.

9ण् सुनील गोयल एण्ड संगीता गोयल, भारतीय समाज में नारी, त्ण्ठण्ैण्।ण् पबिल्शर्स, ैण्डण्ैण् हाई वे जयपुर पृष्ठ क्र. 198‘-199ण्

10ण्   सामाजिक विकल्प समाज विज्ञान शोध पत्रिका 2007-08, पृष्ठ क्र. 145-146

 

 

 


 

Received on 04.05.2019            Modified on 16.05.2019

Accepted on 31.05.2019            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2): 587-594.